मंगलाचरणम्

मंगलाचरणम्
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्नमीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थ- अज्ञान रुपी अंधकार से अंधी हुई आँखो को, ज्ञान रुपी प्रकाश से खोलने वाले अपने गुरु को हम प्रणाम करते हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।।
अर्थ- हे प्रभु! सभी सुखी रहें, सभी स्वस्थ रहें, सभी का कल्याण हो तथा इस संसार में कोई दुखी न हो ।

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवाः । 
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा गूँ सस्तनूभिः ।
 व्यशेमहि देवहितं यदायुः ।।
अर्थ- हे प्रभु! हम अपने कानों से जो भी सुने वह पवित्र एवं कल्याणकारी हो। आँखों से जो भी देखें वह पवित्र एवं कल्याणकारी हो। हम मज़बूत एवं स्वस्थ-शरीर युक्त होकर सन्तोष-पूर्वक जीवन यापन करें तथा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में प्रभु के गुणों का गुणगान करते रहें।



ॐ असतो मा सद्गमय ।
 तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय ।।
अर्थ-  हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य (बुराई से अच्छाई) की ओर ले चलो।
 हे प्रभु! मुझे अज्ञान रुपी अन्धकार से ज्ञान रुपी प्रकाश की ओर ले चलो।
 हे प्रभु! मुझे मृत्यु के भय से अमरत्व के ज्ञान की ओर ले चलो।

 ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
अर्थ- प्रभु हम दोनों (अध्यापक एवं छात्र) की रक्षा कीजिए,
 प्रभु हम दोनों को पालन-पोषण करें,
 हम दोनों मिलकर शक्ति एवं ऊर्जा युक्त होकर कार्य करें,
हमारा अध्ययन ज्ञानवर्धक रहे तथा विद्वेष की भावना न हो।

हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यपिहितं मुखम्।
तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये।। (ईशा 15)
अर्थ- सत्य (आदित्य मण्डलस्थ ब्रहम्) का मुख ज्योतिर्मय पात्र से ढका हुआ है।
हे प्रभु! आकर्षक अज्ञानता को दूर कर, सत्य ज्ञान की पहचान कराएं ।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

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